दिलीप कुमार और विजयन्तिमाला की दोस्ती का उतार-चढ़ाव
किसी भी रिश्ते में उतार-चढ़ाव तो आते ही हैं, खासकर जब बात फिल्मों की दुनिया की हो। यहां दोस्ती और दुश्मनी का खेल कभी-कभी इतना दिलचस्प हो जाता है कि यह एक फिल्म की कहानी से भी ज्यादा रोमांचक बन जाता है। आइए बात करते हैं दो दिग्गजों, दिलीप कुमार और विजयन्तिमाला की, जिनकी दोस्ती भी एक समय में चर्चा का विषय बन गई थी।
दोस्ती का सफर
दिलीप कुमार और विजयन्तिमाला की जोड़ी 50 और 60 के दशक में भारतीय सिनेमा की सबसे प्रिय जोड़ियों में से एक मानी जाती थी। इन दोनों के बीच न केवल पर्दे पर बल्कि पर्दे के पीछे भी एक गहरी दोस्ती थी। लेकिन, एक ऐसा समय आया जब उनकी यह दोस्ती एक छोटे से विवाद के कारण टूटने के कगार पर आ गई।
क्या हुआ था?
1967 में फिल्म "राम और श्याम" के लिए विजयन्तिमाला को दिलीप कुमार के साथ कास्ट किया गया था। उन्होंने फिल्म के कुछ दृश्यों की शूटिंग भी की थी। लेकिन फिल्म के निर्माता, नागी रेड्डी को लगा कि अभिनेत्री अपने कपड़ों और गहनों को लेकर बहुत शिकायत कर रही हैं। इस पर उन्होंने निर्णय लिया कि विजयन्तिमाला को बदल दिया जाएगा।
इस बदलाव के बाद, विजयन्तिमाला का स्थान वहीदा रहमान ने ले लिया। लेकिन विजयन्तिमाला को यह गलतफहमी हो गई कि दिलीप कुमार ने ही उन्हें फिल्म से हटवाने में भूमिका निभाई। इस गलतफहमी ने उनकी दोस्ती में एक दरार पैदा कर दी और वे एक-दूसरे से बात करने तक नहीं लगे।
सईदा बानो का योगदान
यहां पर कहानी में एक नया मोड़ आता है। दिलीप कुमार की पत्नी, सईदा बानो ने इस स्थिति को संभालने का निर्णय लिया। उन्होंने विजयन्तिमाला के साथ अपनी करीबी दोस्ती को देखते हुए दोनों के बीच की दूरियों को मिटाने का प्रयास किया।
सईदा बानो ने एक घटना को याद करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने दिलीप और विजयन्तिमाला को एक साथ लाने का काम किया। उन्होंने दोनों को एक बार मिलवाया, जहां दिलीप और विजयन्तिमाला एक-दूसरे की आँखों में देखने से भी कतराते थे। लेकिन सईदा के प्रयासों से इनकी दोस्ती फिर से पटरी पर आ गई।
एक नई शुरुआत
इस प्रकार, सईदा बानो के प्रयासों से दिलीप कुमार और विजयन्तिमाला की दोस्ती में फिर से जान आ गई। उन्होंने अपने पुराने रिश्ते को एक और मौका दिया। सईदा बानो ने एक खूबसूरत पोस्ट में यह भी साझा किया कि कैसे विजयन्तिमाला और उनके बेटे सुचेंद्र अक्सर उनके घर आते थे, जब वे चेन्नई से यात्रा करते थे।
इस तरह, एक छोटी सी गलतफहमी ने एक मजबूत दोस्ती में दरार डाल दी थी, लेकिन प्यार और दोस्ती की ताकत ने उन्हें फिर से एक साथ ला दिया।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी-कभी रिश्तों में misunderstandings हो जाती हैं, लेकिन सही कोशिशों और प्यार से उन्हें ठीक किया जा सकता है।
यह कहानी आपको किस हद तक प्रभावित करती है? क्या आप किसी ऐसे रिश्ते के बारे में सोच सकते हैं, जिसे आप ठीक करना चाहेंगे?
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